ऐं ज़हरा के बाबा सुनें इल्तिजा
मदीना बुला लीजिए
कहीं मर न जाए तुम्हारा गदा
मदीना बुला लीजिए
सताती है मुझ को रुलाती है मुझ को
ये दुनिया बहुत आज़माती है मुझ को
हूं दुनिया की बातों से टूटा हुआ
मदीना बुला लीजिए
बड़ी बेकसी है बड़ी बे-क़रारी
न कट जाए आक़ा यूंही उ़म्र सारी
कहां ज़िंदगानी का कुछ है पता
मदीना बुला लीजिए
ये एहसास है मुझको मैं हूं कमीना
हुज़ूर आप चाहें तो आऊं मदीना
गुनाहों के दलदल में मैं हूं फंसा
मदीना बुला लीजिए
मैं देखूं वो: रौज़ा मैं देखूं वो: जाली
बुला लीजिए मुझको भी सरकारे-आ़ली
कहां जाए आक़ा ये मंगता भला
मदीना बुला लीजिए
वो रमज़ान तेरा वो: दालान तेरा
वो अज्वा वो: ज़मज़म ये मेहमान तेरा
तेरे दर पे इफ़्तार का वो: मज़ा
मदीना बुला लीजिए
जहां के सभी ज़र्रे शम्सो-क़मर हैं
जहाँ पे अबू-बक्रो-उस्मान उमर हैं
जहान जल्वा-फ़रमा हैं हम्ज़ा चचा
मदीना बुला लीजिए
हुआ है जहां से जहां ये मुनव्वर
जहां आए जिब्रील क़ुरआन ले कर
मुझे देखना है वो: ग़ारे-हिरा
मदीना बुला लीजिए
जिसे सब हैं कहते नक़ी ख़ां का बेटा
वो अहमद रज़ा है बरेली में लेटा
उसी आ़ला हज़रत का है वास्ता
मदीना बुला लीजिए
अता हो बक़ी में ये ज़हरा का सदक़ा
मुझे मौत आए वहीं काश आक़ा
पढ़ा दें वहीं पर जनाज़ा मेरा
मदीना बुला लीजिए
करम कर दिया है ये ख़्वाजा पिया ने
जो मिस्रे लिखे हैं शफ़ाअ़त मियाँ ने
करें दर गुज़र जो हुई हो ख़ता
मदीना बुला लीजिए
ऐं ज़हरा के बाबा सुनें इल्तिजा
मदीना बुला लीजिए
कहीं मर न जाए तुम्हारा गदा
मदीना बुला लीजिए
नात ख़्वां
मुहम्मद अली फ़ैज़ी
about: Aye zahra ke baba sune iltija | madina bula lijiye
नात ऐ ज़हरा के बाबा सुनें इल्तिजा मोहम्मद अली फैज़ी द्वारा, मदीना की तलब और इश्क़ का दिल से किया गया इज़हार है। शायर बड़े ही अदब के साथ यह गुज़ारिश करते हैं कि हुज़ूर ﷺ उन्हें मदीना की ज़ियारत का शरफ़ अता करें। यह अल्फ़ाज़ दुनियावी मुश्किलात, रूहानी तकलीफ़, और गुनाहों के बोझ को बयां करते हैं, जबकि मदीना की पनाह को अपनी आख़िरी उम्मीद बताते हैं।
इस नात में मदीना की रूहानी अज़मत और ऐतिहासिक मक़ामात को ख़ास तौर पर उजागर किया गया है। शायर रौज़ा और जाली की ज़ियारत की ख्वाहिश का ज़िक्र करते हैं। रमज़ान के रूहानी माहौल और अज्वा और ज़मज़म की बरकतों का ज़िक्र करते हुए अपने दिल की आरज़ू का इज़हार करते हैं। मदीना को अंबिया, सहाबा किराम, और अहले बैत के नूरानी जलवों का मरकज़ करार देते हुए, एक ऐसी रूहानी तस्वीर पेश की गई है जो हर आशिक-ए-रसूल के दिल को छू जाती है।
शायर बेहद अदब के साथ अपने गुनाहों का इक़रार करते हैं और हुज़ूर ﷺ की शफ़ाअत की गुज़ारिश करते हैं। आख़िर में, वह मदीना में वफ़ात पाने और जन्नत-उल-बक़ी में दफ्न होने की तमन्ना का इज़हार करते हैं। इस नात का हर मिसरा इश्क़ और अकीदत की ख़ुशबू से महक रहा है, जो सुनने वालों के दिल को मदीना की मोहब्बत से सरशार कर देता है।