झंडे लगाओ ईद मनाओ बारह रबीउ़ल अव्वल है,
झूम के नाते-पाक सुनाओ बारह रबीउ़ल अव्वल है
छोड़ भी दो अब ज़िद मुल्लाजी राहे-वफा पर आ जाओ
आओ इधर शीरीनी खाओ बारह रबीउ़ल अव्वल है
रह़मते-आ़लम ने दुनिया को कितना ह़ंसी पैग़ाम दिया
सीने से दुश्मन को लगाओ बारह रबीउ़ल अव्वल है
परचम दीन का लहराना जिब्रीले-अमीं की सुन्नत है
घर घर में झंडे लहराओ बारह रबीउ़ल अव्वल है
नात ख़्वां
ह़ज़रत शान अ़ली ग़यावी
यह नात बारह रबीउल अव्वल के मौके पर एक खुशनुमा माहौल को प्रकट करती है। शायर ने ईद-ए-मिलाद की खुशी को बड़े सुंदर तरीके से पेश किया है,
जिसमें झंडे लगाना और नाते-पाक सुनाना इस पर्व की विशेषता है। उनका संदेश सीधा और स्पष्ट है कि मुल्लाजी की ज़िद छोड़ कर सभी को वफा की राह पर आना चाहिए और मिठाई का आनंद लेना चाहिए। नात में रहमत-ए-आलम के संदेश को भी बड़ी श्रद्धा के साथ प्रस्तुत किया गया है, जिसमें दुनिया को प्यार और दया का पैगाम देने की बात की गई है। इस रचना में जिब्रील-अमीं की सुन्नत के अनुरूप घर-घर झंडे लहराने की सलाह दी गई है,
जो इस पर्व के महत्व को और बढ़ा देती है। शायर हज़रत शान अली ग़यावी की यह नज़्म, बारह रबीउल अव्वल की खुशी और उल्लास को निखारती है।