क्या बताऊँ कि क्या मदीना है
बस मेरा मुद्दआ मदीना है
क्या बताऊँ कि क्या मदीना है
उठ के जाऊँ कहाँ मदीने से
क्या कोई दूसरा मदीना है
क्या बताऊँ कि क्या मदीना है
उस की आँखों का नूर तो देखो
जिस का देखा हुवा मदीना है
क्या बताऊँ कि क्या मदीना है
दिल में अब कोई आरज़ू ही नहीं
या मुहम्मद है या मदीना है
क्या बताऊँ कि क्या मदीना है
दुनिया वाले तो दर्द देते हैं
ज़ख़्मी दिल की दवा मदीना है
क्या बताऊँ कि क्या मदीना है
दुनिया वाले तो दर्द देते हैं
दर्दे दिल की दवा मदीना है
क्या बताऊँ कि क्या मदीना है
मेरे आक़ा मुझे बुला लीजिए
मुझ को भी देखना मदीना है
क्या बताऊँ कि क्या मदीना है
दिल फ़िदा है मदीने वाले पर
दिल मुनव्वर मेरा मदीना है
क्या बताऊँ कि क्या मदीना है
नात ख़्वां
अज़मत रज़ा भागलपुरी
नात “Kya batau ki Kya Madina Hai” का रिव्यू – अजमत रज़ा भागलपुरी
अजमत रज़ा भागलपुरी ने नात “क्या बताऊँ कि क्या मदीना है” में मदीना की रूहानी अज़मत और हुस्न को बहुत ही खूबसूरती से बयान किया है। हर मिसरा में “क्या बताऊँ कि क्या मदीना है” का तक़रार सुनने वाले के दिल पर गहरा असर छोड़ता है, जो मदीना की बेमिसाल अज़मत और इश्क़ को उजागर करता है। ये हर शेर एक आशिक-ए-रसूल ﷺ के जज़्बात और उनकी तलब का इज़हार है।
मिसरे जैसे “ज़ख़्मी दिल की दवा मदीना है” मदीना को एक ऐसी जगह के तौर पर पेश करते हैं जहाँ दिलों को सुकून और राहत मिलती है। इसी तरह “या मोहम्मद है या मदीना है” के अल्फ़ाज़ नबी करीम ﷺ और मदीना पाक के साथ ना तोड़ मोहब्बत और लगाव को दिखाते हैं। हर अल्फ़ाज़ एक मोमिन के दिल में इश्क-ए-रसूल ﷺ और मदीना की याद के जज़्बात जगाता है।
अजमत रज़ा भागलपुरी की पुरसोज़ आवाज़ और दिलचस्प अंदाज़ नात को और भी दिलकश बना देते हैं। इस नात को सुनकर दिल में मदीना जाने की ख़्वाहिश और इश्क-ए-रसूल ﷺ की तड़प और बढ़ जाती है। ये नात यक़ीनन एक लाज़वाल शाहकार है जो सुनने वाले के दिल और रूह को गहरे तौर पर मुतास्सिर करती है।