नवासा हूं पयंबर का मुझे शब्बीर कहते हैं
मेरी मां फा़ति़मा ज़हरा मुझे शब्बीर कहते हैं
वो घर जिसमें इजाज़त लेके आते बुलबुले-सिदरा
उसी घर का हूं परवर्दा मुझे शब्बीर कहते हैं
ह़सन मेरे बड़े भाई तो ज़ैनब हैं बहन मेरी
मेरे बाबा अ़ली मौला मुझे शब्बीर कहते हैं
चचा हैं मेरे वालिद के जनाबे-सय्यदुश-शोहदा
भतीजा हूं में जाफ़र का मुझे शब्बीर कहते हैं
मुहब्बत मुझ से जो करता है उस को जाम कौसर का
पिलाएँगे मेरे नाना मुझे शब्बीर कहते हैं
नबी नाना अली बाबा हसन भाई तो माँ ज़हरा
है किस का ख़ानदाँ ऐसा मुझे शब्बीर कहते हैं
यज़ीदी फ़ौजिओ सुन लो मैं तन्हा सब पे भारी हूँ
अली हैदर का हूँ बेटा मुझे शब्बीर कहते हैं
मुझे मजबूर मत समझो न ताना प्यास का तुम दो
मेरी ठोकर में है दरिया मुझे शब्बीर कहते हैं
रसूलल्लाह को महशर में कैसे मुँह दिखाओगे
गला तुम काट कर मेरा मुझे शब्बीर कहते हैं
यहाँ आया हूँ मैं वादा निभाने अपने बचपन का
हूँ वादे का बहुत पक्का मुझे शब्बीर कहते हैं
कटाना सर, लुटाना घर गवारा है मुझे लेकिन
नहीं मैं हाथ दे सकता मुझे शब्बीर कहते हैं
सुनाओ मनक़बत क़ासिम कि जिस का पहला मिस्रा है
नवासा हूँ पयम्बर का मुझे शब्बीर कहते हैं
नात ख़्वां
मुहम्मद अ़ली फैज़ी
नज़्म nawasa hu payambar ka mujhe shabbir kehte hai का रिव्यू मोहम्मद अली फैज़ी
मोहम्मद अली फैज़ी की नज़्म “नवासा हूँ पयंबर का” इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की शख्सियत, उनकी विरासत और उनके अज़ीम घराने की अज़मत को बेहद खूबसूरत अंदाज़ में पेश करती है। हर शेर इमाम की मोहब्बत, उनके इरादों की मज़बूती और उनके घराने की बुलंदियों का आईना है। नज़्म के अल्फाज़ जैसे “नबी नाना अली बाबा हसन भाई तो माँ ज़हरा” इमाम के बेमिसाल खानदान को बयां करते हैं, जो मुसलमानों के लिए रहनुमाई और इश्क का मरकज़ है।
नज़्म के हर मिसरे में इमाम हुसैन की बहादुरी और उनके सच्चे इरादों का ज़िक्र मिलता है। खास तौर पर “यज़ीदी फौजियो सुन लो, मैं तन्हा सब पे भारी हूँ” जैसे अल्फाज़ इमाम की मज़बूत शख्सियत और उनके अल्लाह पर भरोसे की गहराई को बयान करते हैं। इसी तरह “कटाना सर, लुटाना घर, गवारा है मुझे लेकिन, नहीं मैं हाथ दे सकता” इमाम की वफादारी और उनके अज़ीम मकसद के लिए कुर्बानी देने के जज़्बे को उजागर करता है।
मोहम्मद अली फैज़ी की शायरी में न सिर्फ इमाम हुसैन की ज़िंदगी का निचोड़ है, बल्कि उनके अहद को निभाने और इस्लाम के असूलों के लिए दी गई कुर्बानी की भी झलक है। उनकी पुरजोश आवाज़ और दिल को छू लेने वाला अंदाज़ नज़्म को और भी खास बना देता है। ये नज़्म यकीनन इमाम हुसैन की अज़मत को समझने और उनसे मोहब्बत का जज़्बा पैदा करने के लिए एक बेहतरीन कोशिश है।