उनकी गली की बात न पूछो नक़्शा ही कुछ ऐसा है
जन्नत भी क़ुरबान है जिस पर तैयबा ही कुछ ऐसा है
नूरे मुजस्सम आप का रूए-ज़ेबा ही कुछ ऐसा है
देख के क्यूं ईमान न लाए जलवा ही कुछ ऐसा है
ज़ुल्फो-रुख़ लबहा-ए-मुबारक पेशानी सुबहानल्लाह
आंख मलें जिब्रील भी आकर तलवा ही कुछ ऐसा है
ऊंचे ऊंचे ताजवरों का सर है ख़म जिन क़दमों पर
मेरे नबी के घर वालों का रुतबा ही कुछ ऐसा है
ना मुम्किन को मुम्किन करके शेर का जबड़ा फाड़ दिया
गौस के दर पर पलने वाला कुत्ता ही कुछ ऐसा है
है यह करामत हिंद के राजा या’नी मेरे ख्वाजा की
सारा सागर आ जाता है कासा ही कुछ ऐसा है
नाम है जिनका शाहे अख़्तर और लक़ब फख्ऱे अज़हर
चांद सितारे शरमा जाएं चेहरा ही कुछ ऐसा है
नाम ही सुनकर मरजाते हैं नजदी वहाबी यह सारे
देखलो चल कर मेरे रज़ा का बेटा ही कुछ ऐसा है
वाहिदी रज़वी बरकाती हर महफ़िल में चल जाता है
मेरे इमाम आला हज़रत का सिक्का ही कुछ ऐसा है
उनकी गली की बात न पूछो नक़्शा ही कुछ ऐसा है
जन्नत भी क़ुरबान है जिस पर तैयबा ही कुछ ऐसा है
नात ख्वां
सैफ रज़ा कानपुरी
about: unki gali ki baat na pucho naat lyrics
नात उनकी गली की बात न पूछो नक्शा ही कुछ ऐसा है सैफ रज़ा कानपुरी ने बड़ी खूबसूरती से मदीना और अहले-बैत की शान का बयान किया है। शायर ने नबी-ए-करीम ﷺ के शहर तयबा को जन्नत से भी बेहतर बताते हुए, उसकी खूबसूरती और रूहानी फज़ीलत का जिक्र किया है। इस नात के हर शेर में मोहब्बत, अकीदत और तारीफ का जज़्बा साफ झलकता है।
शायर ने हुज़ूर ﷺ के नूरानी चेहरे और उनकी ज़ुल्फों की तारीफ करते हुए उनकी खूबसूरती का ऐसा नक्शा खींचा है कि देखने वाला खुद-ब-खुद ईमान ले आए। जिब्रील अमीन के भी अदब के साथ हुज़ूर के कदमों में झुक जाने का जो ज़िक्र है, वह नबी ﷺ की अज़मत और उनकी शान को बयान करता है। शायर ने नबी के घर वालों के रुतबे को भी बहुत ही खुबसूरत अंदाज में पेश किया है, यह बताते हुए कि ऊंचे से ऊंचे ताजदार भी उनके कदमों में सर झुका देते हैं।
आगे चलकर, शायर गौस-ए-आज़म और ख्वाजा गरीब नवाज़ की करामात का जिक्र करते हुए उनके मुरीदों और चाहने वालों की शान को बयान करता है। आखिर में, आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा खां की तारीफ करते हुए उनके इल्म और फज़ीलत का ज़िक्र किया गया है। इस नात का हर मिसरा इश्क-ए-रसूल और उनके चाहने वालों की मोहब्बत से भरा हुआ है, जो सुनने वालों के दिलों में अकीदत का जज़्बा पैदा कर देता है।