यह न पूछो किधर जा रहा हूं
आज मैं अपने घर जा रहा हूं
दोस्तों अब न आंसू बहाना
क़ब्र ही तो है असली ठिकाना
बस यही सौच कर जा रहा हूं
आज मैं अपने घर जा रहा हूं
पास मेरे नहीं सोने चांदी
हाथ मेरे हैं दोनों ही खा़ली
छोड़कर मालो-ज़र जा रहा हूं
आज मैं अपने घर जा रहा हूं
सामने रू-ए-सरकार होगा
क़ब्र में उनका दीदार होगा
बस यही सौच कर जा रहा हूं
आज मैं अपने घर जा रहा हूं
दफ़्न करके मुझे मत भुलाना,
क़ब्र पर तुम मेरी आना जाना,
सुन लो लख़्ते-जिगर जा रहा हूं
आज मैं अपने घर जा रहा हूं
यह न पूछो किधर जा रहा हूं,
आज मैं अपने घर जा रहा हूं
नात ख्वां
अज़मत रज़ा भागलपुरी
ye na pucho kidhar ja raha hoon lyrics – एक जज़्बाती और गहरी नज़्म
आज मैं अपने घर जा रहा हूँ नात-ख़्वा अज़मत रज़ा भागलपुरी की एक बहुत ही जज़्बाती और गहरी नज़्म है, जो मौत और आख़िरत के बारे में सोचने को मजबूर करती है। नज़्म की शुरुआत एक गहरी सोच से होती है: ये न पूछो किधर जा रहा हूँ, आज मैं अपने घर जा रहा हूँ। यह पंक्ति किसी इंसान के जिस्म को छोड़कर उसकी रूह की आख़िरी मंजिल की तरफ जाने का पैग़ाम देती है। यह नज़्म हमें ज़िन्दगी की असलियत और मौत के बाद की इज्जत और सुकून के बारे में सोचने का मौका देती है।
नज़्म के दूसरे हिस्से में मौत को एक हक़ीकत के रूप में दिखाया गया है, जहाँ इंसान अपनी सारी दुनियावी परेशानियों से आज़ाद होकर सुकून हासिल करता है। क़ब्र ही तो है असली ठिकाना, बस ये सोच कर जा रहा हूँ — यह पंक्ति ये बताती है कि दुनिया की तमाम दौलत और खुशियों के बावजूद, इंसान का असली ठिकाना वही है जहाँ उसे असली सुकून और चैन मिलता है। यह नज़्म इस सोच को गहराई से समझाती है कि मौत के बाद रूह को असली सुकून और स्थिरता मिलती है, जहाँ वह दुनियावी चीज़ों से बिलकुल अलग हो जाती है।
आख़िरी हिस्से में, नात-ख़्वा अपनी आख़िरी ख़्वाहिश का इज़हार करते हुए कहते हैं: दफ़न करके मुझे मत भूलना, क़ब्र पर तुम मेरी आना-जाना। यह पंक्ति इस बात को समझाती है कि मौत के बाद भी इंसान की यादें और अच्छे काम उसे ज़िंदा रखते हैं। वह चाहता है कि लोग उसे न सिर्फ़ याद करें, बल्कि उसके अच्छे कामों और दुआओं को अपनी ज़िन्दगी में अपनाएं। यह नज़्म हमें यह समझाती है कि मौत सिर्फ़ जिस्म की ख़त्मी नहीं, बल्कि इंसान के अच्छे काम और यादें हमेशा ज़िंदा रहती हैं।
अज़मत रज़ा भागलपुरी की यह नज़्म मौत और आख़िरत के हवाले से एक नई सोच पेश करती है। यह नज़्म न सिर्फ़ रूह की ज़िन्दगी के बारे में सोचने की तर्ज़ीब देती है, बल्कि हमें अपनी ज़िन्दगी के असल मकसद और उसके शाश्वत पहलू को समझने की कोशिश करने को भी कहती है। इसके ज़रिए हमें अपनी ज़िन्दगी में सुकून और मानसिक संतुलन ढूंढने का एक नया रास्ता मिलता है।