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अम्मी ख़दीजा की मैं करूं कैसे मद्हख़्वानी | जौ़जा हैं मुस्त़फा़ की ह़सनैन की हैं नानी | zoja hai mustafa ki hasnain ki hai nani

अम्मी ख़दीजा की मैं करूं कैसे मद्हख़्वानी,
जौ़जा हैं मुस्त़फा़ की ह़सनैन की हैं नानी

मेरे नबी के घर का सिंगार बन गई हैं
गमखा़र के लिए भी गमखा़र बन गई है
दुख बांटती हैं उसका जो दीन का है बानी

जौ़जा हैं मुस्त़फा़ की ह़सनैन की हैं नानी

क्या ख़ूब जिंदगी है सरताज खु़द नबी है
मेरे नबी के घर में जो बजहे-रौशनी हैं
देखी है जिसने रब के महबूब की जवानी

जौ़जा हैं मुस्त़फा़ की ह़सनैन की हैं नानी

जै़नब, रुक़य्या, उम्मे-कु़लसूम की भी माँ हैं
ज़हरा से लेके हर एक मज़लुम की भी माँ हैं
है जग में जो भी सय्यद उस माँ की है निशानी

जौ़जा हैं मुस्त़फा़ की ह़सनैन की हैं नानी

मेरे तो दिल में बस एक ह़सरत यही ज़रा है
ऐ फा़ति़मा की अम्मी तुझ से ये इल्तिजा है
मेरी मांँ पे रौजे़-मह़शर कर देना महरबानी

जौ़जा हैं मुस्त़फा़ की ह़सनैन की हैं नानी

ना’त-ख़्वां:
मोह़म्मद अ़ली फै़जी़


यह मनक़बत नात ख्वां मोहम्मद अली फैजी़ ने पड़ी है, जो हजरत खतीजा की अज़मत और एहतराम को बयां करती है, शायर ने हज़रत खदीजा को ना सिर्फ हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के घर की ज़ीनत करार दिया है बल्कि हर मुसलमान के दुख सुख में शरीक, और दीन की खिदमत करने वाली भी कहा है,

इस मनक़बत में हज़रत खदीजा की खुसूसियत और अहमियत को बड़ी खूबसूरती से बयान किया गया है, उन्हें हज़रत हसन और हुसैन की दादी और हज़रत फातिमा से लेकर हर मजलूम की मां के तौर पर पेश किया गया है,

शायर ने उनकी शफक़त और अज़मत को उजागर करते हुए उनके लिए अपनी गहरी मोहब्बत और दुआ भी ज़ाहिर की है, इस तरह यह मनक़बत न सिर्फ हज़रते खतीजा की अज़मत को उजागर करती है बल्कि इस्लामी तारीख और शताब्दी बरसे के हवाले से भी एक कीमती तोहफा है